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देवता: इन्द्र: ऋषि: अत्रिः छन्द: बृहती स्वर: मध्यमः

वृषा॒ ग्रावा॒ वृषा॒ मदो॒ वृषा॒ सोमो॑ अ॒यं सु॒तः। वृष॑न्निन्द्र॒ वृष॑भिर्वृत्रहन्तम ॥२॥

अंग्रेज़ी लिप्यंतरण

vṛṣā grāvā vṛṣā mado vṛṣā somo ayaṁ sutaḥ | vṛṣann indra vṛṣabhir vṛtrahantama ||

पद पाठ

वृषा॑। ग्रावा॑। वृषा॑। मदः॑। वृषा॑। सोमः॑। अ॒यम्। सु॒तः। वृ॒ष॑न्। इ॒न्द्र॒। वृष॑ऽभिः। वृ॒त्र॒ह॒न्ऽत॒म॒ ॥२॥

ऋग्वेद » मण्डल:5» सूक्त:40» मन्त्र:2 | अष्टक:4» अध्याय:2» वर्ग:11» मन्त्र:2 | मण्डल:5» अनुवाक:3» मन्त्र:2


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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अब मेघविषय को कहते हैं ॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वृषन्) बल की इच्छा करते हुए (वृत्रहन्तम) अतिशय करके शत्रुओं के और (इन्द्र) दुःखों के नाश करनेवाले जन ! जो (अयम्) यह (वृषा) आनन्द को उत्पन्न करने और (वृषा) वृष्टि करनेवाला (ग्रावा) मेघ और (मदः) आनन्द तथा (वृषा) सुख का वर्षानेवाला (सोमः) ओषधियों का समूह (सुतः) उत्पन्न किया गया है, उन (वृषभिः) मेघादिकों से कार्य्यों को सिद्ध कीजिये ॥२॥
भावार्थभाषाः - जो मेघ आदि पदार्थ हैं, उनसे मनुष्य बहुत कार्य्यों को सिद्ध कर सकते हैं ॥२॥
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स्वामी दयानन्द सरस्वती

अथ मेघविषयमाह ॥

अन्वय:

हे वृषन् वृत्रहन्तमेन्द्र ! योऽयं वृषा वृषा ग्रावा मदो वृषा सोमः सुतोऽस्ति तैर्वृषभिः कार्य्याणि साध्नुहि ॥२॥

पदार्थान्वयभाषाः - (वृषा) वृष्टिकरः (ग्रावा) मेघः (वृषा) आनन्दकरः (मदः) हर्षः (वृषा) सुखवर्षकः (सोमः) ओषधिगणः (अयम्) (सुतः) निष्पादितः (वृषन्) बलमिच्छन् (इन्द्र) दुःखविदारक (वृषभिः) मेघादिभिः (वृत्रहन्तम) अतिशयेन शत्रुविनाशक ॥२॥
भावार्थभाषाः - ये मेघादयः पदार्थाः सन्ति तैर्मनुष्या बहूनि कार्य्याणि साद्धुं शक्नुवन्ति ॥२॥
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माता सविता जोशी

(यह अनुवाद स्वामी दयानन्द सरस्वती जी के आधार पर किया गया है।)
भावार्थभाषाः - मेघ इत्यादीद्वारे माणसे पुष्कळ कार्य करू शकतात. ॥ २ ॥